दान क्या है..

दान क्या है? दान के बदले धन्यवाद या अपनी जयकार की अभिलाषा क्या दान को ब्यर्थ बना देता है?

एक राजा था, जो प्रतिदिन अपने महल के बाहर भंडारा लगाकर भूखों को खाना खिलाता था । उस भंडारे में प्रतिदिन आसपास के निवासी आते और खाना खाते थे । राजा खाना खाने के पहले सबको भगवान से प्रार्थना करने के लिए बोलता । वह बोलता हे ईश्वर आपने हमें जीवन दिया यह भोजन दिया उसके लिए धन्यवाद है । उसी के बाद बाकी लोगों को भोजन करने की अनुमति होती थी ।

एक दिन कहीं बाहर से एक भूखा व्यक्ति उस भंडारे में आया राजा ने खुद उसे अपने हाथों से भोजन देते हुए भोजन से पहले ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए कहा । परंतु उस व्यक्ति ने ऐसा नहीं किया । राजा को इस बात पर गुस्सा आया उसने कहा तुम्हें भोजन करनी है, तो ईश्वर की पूजा करनी पड़ेगी । वह व्यक्ति भी बहुत ढीठ था उसने ना तो ईश्वर की पूजा की और ना ही भोजन किया । व्ह वहां से भूखा ही चला गया । 

राजा पूरे दिन उस आदमी के के बारे में सोचता रहा ।  रात में उस राजा के स्वप्न में भगवान आए । उस राजा ने भगवान से सारी बात बताई और कहा भगवान देखिए कैसा ढीठ था उसने आपको धन्यवाद भी नहीं दिया, और मैंने उसे भूखा ही भगा दिया । यह बात सुनकर ईश्वर ने कहा हे राजन वह व्यक्ति तो जन्म से ही नास्तिक है और जब इतने दिनों से मैं उसे भोजन करा रहा था तो तुम कौन होते हो उसे भूखा लौटाने वाले । 

इस बात से राजा को सच्चाई का बोध हुआ वह सोचने लगा मुझसे अच्छा तो वह नास्तिक झूठ ही है जिसने अपना कर्म नहीं छोड़ा। दान देने वाला व्यक्ति तो सिर्फ एक माध्यम होता है, वास्तव में सबको देने वाला तो एक ही है, जिसे हम ईश्वर कहते है ।

दान कभी भी शर्तों पर नहीं किया जाता और ना ही बदले में कुछ पाने की लालसा से की जाती है। इतना कम है कि दान एक पुण्य कार्य है और वह हमारे ही काम आती है।

आजकल तो दान देते हुए लाइव तस्वीर सोसल नेटवर्किंग साइट पर साझा करके गरीबों का मजाक और खुद को बड़ा दानवीर साबित करने की होड़ सी मची हुई है।  

M K Sinha
www.sinhagroup.net

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