मैंने देखा तो क्या गुनाह किया

 मैंने देखा तो क्या गुनाह किया 
तुमको चाहा तो क्या गुनाह किया 
वाकई तुममें क्या नजाकत है 
दिल जो मचले तो क्या गुनाह किया 
तुमने तो एक भी खत नहीं लिखा 
मैंने लिखा तो क्या गुनाह किया 
जिंदगी क्या है एक मुसीबत है 
मैंने सोचा तो क्या गुनाह किया 
तुमने जुल्फों को क्या बिखेरा है 
दिल जो उलझा तो क्या गुनाह किया 
आग कैसे भड़क उठी इस दम 
बाग़ लहका तो क्या गुनाह किया 
कौन सी मय पिला दिया तुमने "साजन" 
दीवाना बाहका तो क्या गुनाह किया

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