सैलाब देख नैनों में
सैलाब देख नैनों में
सैलाब उम्र आते हैं
तबाही के दिन याद आते हैं
ढाये सितम याद आते हैं
ढलती शाम है तनहा
आंखों में प्यास है
बिना तेरे हर एक लम्हा
जिंदगी कितनी उदास है
न कोई उमंग है
न कोई तरंग है
फिर भी
जीने की लगन है
भटकते हैं हम तलाश में पनाहों की
काश उनकी जुल्फों की छांव
कहीं मिल जाती खिल उठते पलाश वीराने में "साजन"
भंवर में पार होने को नाव मिल जाती
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