सभी बयां करते हैं अपनी उल्फत के फसाने

सभी बयां करते हैं अपनी उल्फत के फसाने 
कोई लिखता है कोई गाकर सुनाता है तराने 
कहते हैं इश्क है ही ऐसा गुनाह 
कोई जानकर नहीं करता हो जाता है अनजाने 
हद के अंदर तो सभी करते हैं मोहब्बत 
हद से बाहर निकलने वाले कहलाते हैं दीवाने 
तेरी याद आती है बेचैन हो उठते हैं 
वक्त के हाथों मगर हम मजबूर रहते हैं 
ए खुदा आज तो उससे मुलाकात हो जाए 
यही दुआ मांग कर "साजन" निकलते हैं घर से

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