बाहों में जब सिमट के आती हो

बाहों में जब सिमट के आती हो 
आसमा भी जमीन सा लगता है 
मेरी चाहत ने जब से चाहा तुझे  
सारा आलम रंगीन लगता है 
तेरी नूरानी हुस्न के आगे 
चांद भी मल्लीन लगता है 
जब भी पर्दा नशीन होती है 
जुर्म तेरा "साजन" संगीन लगता है

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