प्रेम तो गंगा की तरह पवित्र है

प्रेम तो गंगा की तरह पवित्र है अश्लीलता और वासना ने इसे मैला कर दिया। सच्चे प्रेमियों की दीवानगी ने इसे किस्मत की उन बुलंदियों पर पहुंचा दिया जहां यह संगम कहलाया और दर्शनीय हो गया। त्रिकोणीय प्रेम में जहां त्याग आया वहां यह सरस्वती की तरह अदृश्य हो गया । मन ही मन मैं पैदा हुआ और मन में ही मन में मर गया। प्रेम की भावनाओं में नहा कर इंसानी रूह जिंदगी के रहस्यों से रिहा होकर खुदा ही तो बन जाती है। 

प्रेम तो गंगा की तरह पवित्र है। अश्लीलता  और वासना ने इसे मैंला कर दिया । सच्छे प्रेमियों की दीवानगी ने इसे किस्मत की उन बुलंदियों पर पहुंचाया, जहां यह संगम कहलाया और दर्शनीय हो गया। त्रिकोणीय प्रेम में जहां त्याग आया, वहां यह सरस्वती की तरह अदृश हो गया। मन ही मन में पैदा हुआ और मन में ही मर भी गया ।प्रेम की भावना होने में नहा कर इश्क की रूह जिंदगी के रहस्यों से रिहा होकर खुदा ही तो बन जाती है।

"मुहाबत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले"

इश्क, प्रेम, प्यार, मुहब्बत, आशिकी, दीवानगी। किसी ने इसे रास्ते का पत्थर बताया तो किसी ने उल्फत का मंदिर। उल्फत में आशिकों ने ताज बनाया भी। प्यार मगरूर भी बना प्यार सुरूर भी बना । प्यार ओस की वो नाजुक बंद है, जिसे वक्त ने कभी अनारकली कहकर पुकारा तो कभी लैला । कभी भक्तों ने आईने में मोहब्बत हिर बन कर मुस्कुराई तो कभी सोहनी । और जब इतिहास के पन्नों ने मांगी मोहब्बत की कसक तो मजनू, रांझा, महिवाल ने खूने - जिगर की स्याही से हरफ बनकर उन पन्नों को किया आबाद।

"वही सर्द हवा के झोंके आग लगाकर छोड़ गए, फूल खिले शखो पे नए और पुराने दर्द याद आए"

यही है मोहब्बत, जिसका कोई ओर नहीं । जो जमीन से पहले शुरू हुई और आसमा से भी आगे जिसका मुकाम है। यही उनके जख्मों का मरहम भी है जिन आशिकों के दिल का दर्द है ये।

M K Sinha

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